Wednesday 11 November 2015

इल्लुमिनेशन !!

मेरी आँखों में नींद के कतरे काम और ज़ुनून ज्यादा है शायद. ज़ुनून है बस उस 15 मिनट में अपनी ज़िन्दगी जीने का जिसकी कीमत शायद 15 दिन के नींदों से ज्यादा है.हाँ शायद मैंने नींद का सौदा किया है वो चीज़ के लिए जिसे दुनिया महसूस करना चाहती है, सामने से देखना चाहती है और शायद सबसे पहले भी देखना चाहती है.मैं बात कर रहा हूँ खड़गपुर के दिवाली की,जिसे हम इल्लुमिनेशन के नाम से जानते है.इल्लुमिनेशन दीयों का त्योहार है जिसमे हम केजीपिअन खड़ी चटाइयों पर दीयों से कोई आकृति बनाते है.कोई रामायण का एक पूरा काण्ड उन चटाइयों पर आंकित कर देता है तो कोई छोटे सी आकृति में ही एक काण्ड दर्शा देता है.
इसकी तैयारी शुरू होती है एक सोच से की हमें इस बार लोगों को किस तरह से आचम्भित करना है उन्हें चकित करना है.फिर उसके हिसाब से तार को घुमाकर लूप्स बनाये जाते है जिनकी संख्या हज़ारों  में होती है.चटाइयों पर पहले चौक से आकृति बना उसपर लूप्स बांधे जाते है.हम उन्हें आज से बचने के लिए चटाइयों पर मट्टी का लेप भी लगते है.
बात करें दिवाली के दिन की तो उस दिन एक साथ हज़ारों में दीये चटाइयों पर चढ़ाये जाते है और जब समय आने पर उन्हें एक साथ जलाया जाता है तो एक विहंगम दृश्य का आविष्कार होता है जिसे देखने कितने लोग बाहर से आते है अपने घर की दिवाली छोड़ कर बस हमारे उन 15 दिनों की मेहनत पर विश्वास कर उन्हें  15 मिनट तक देखने आते है. वही ख़ुशी और 15 मिनट जीने आते है जिसके लिए हमने अपनी नींदे उड़ा रखी थी.
दिल बाग़ बाग़ हो जाता है जब हम ये देखते है की जो हमने सपनो में देखा था वो चटाई पर उतर चुकी है बिलकुल उसी के समान उसी के रंग ढंग में.शायद मैं उस ख़ुशी को इस शब्दों के रंग से नहीं रंग सकता पर कुछ तो अनोखा होता है उस वक़्त जब लोग आपके काम की तारीफें कर रहे होते है उसका आनंद ले रहे होते है.अंत में हम इस समारोह का समापन अनगिनत रसगुल्ले खाकर करते है.
15 मिनट के बाद उन दीयो से सजी चटाइयों की कोई कीमत नहीं रह जाएगी.कल कोई झाड़ू लेकर  आएगा और उन मिटटी से बने दियो को फिर से मिटटी में मिला देगा.15 दिनों से हम जिसपर काम कर रहे थे वो हमे 15 मिनट का आनंद देकर 15 मिनट में उस चटाई का साथ छोड़ देगी.बुरा तो लगता पर शायद उस दीये का अस्तित्व ही मिटटी में मिलने के लिए होता है.अंत में मैं हम सबको मिटटी के दिए से ही तुलना करते हुए कहना चाहूंगा की हम भी मिटटी के बने है अगर हम सिर्फ दीये की तरह दूसरों के जीवन में थोड़ा सा उजियारा फैला कर मिटटी में मिल जाये तो हमारा जीवन सफल माना जायेगा.



No comments:

Post a Comment