ज़िन्दगी बहुत अजीब है,कब क्या कर दे कुछ मालूम ही नहीं होता.हम किसी की पीछे भागते है और वो किसी और के पीछे.सोचता हूँ की भागना ही बंद कर दूँ.जो मिलना होगा मिल जायेगा पर फिर ज़िन्दगी कुछ ऐसा क्यों करती है जो हममे भागने पर मज़बूर कर देता है.किसी के पास समय नहीं होता तो किसी के पास इरादा.पर हकीकत ये है की अगर हम उन चीज़ों पर अपना ध्यान केंद्रित करें जो हमारे पास है और उन लोगों से तुलना करें जिनके पास कुछ भी नहीं है तो हम खुद तो ज्यादा खुशनसीब पाएंगे.सच में कभी कभी तो समझ में नहीं आता है की करना क्या है.बिलकुल ठंढे पड़ जाते है.मेरे हिसाब से हमे कुछ चीज़ों को वक़्त और ईश्वर पे छोड़ देना चाहिए और आगे बढ़ना चाहिए.मै भी अभी कुछ इसी तरह की परिस्थिति में हूँ मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा है की ज़िन्दगी के इस खेल में क्या भूमिका निभाऊ,ज़िन्दगी के इस होली में रंगों से भींग जाऊ या फिर कही जाकर छुप जाऊ या फिर सिर्फ आगे बढू यह मान कर की जो होगा अच्छा ही होगा.वैसे तो मैंने अपने दोस्तों की भी सहायता ली पर सब कुछ व्यर्थ रहा.जैसा की मैंने पहले भी कहा है की ज़िन्दगी एक सागर के सामान है और हम एक नाव की भांति और इस लम्बे सफर में कुछ फैसले हमें ही करने होते है चाहे वो सही हो या गलत,पर फैसले हमें ही लेने होते है.क्या होगा ज्यादा से ज्यादा हम गिर जायेंगे हमें चोट लगेगी,पर मुझे विश्वास है ज़िन्दगी पर अगर ये एक द्वार बंद करेगी तो दूसरा भी ज़रूर खोलेगी.
this is about poetry based on some memorable moments which i experience in my day to day life..
Wednesday 29 October 2014
Saturday 25 October 2014
मेरे पड़ोसी !!
यहाँ तीन साल में मुझे तरह तरह के पड़ोसी मिले,कुछ ज्यादा ही मस्ती मज़ाक करते थे तो कुछ हाल चाल पूछने तक नहीं आते.पहले वर्ष में मेरे पड़ोसी ऐसे थे जिनकी कहानियां सुनते लोग लोट पोट हो जाएँ,वही दूसरे तरफ शौचालय होने के कारण दूसरे पड़ोसी का नसीब मुझे हासिल नहीं हुआ.दूसरे वर्ष एक और ठीक थक लोग थे जो समय समय पर काम से काम टाइम पास करने में मदद कर दिया करते थे और पहले वर्ष की ही तरह मेरे दूसरी तरफ सीनियर्स रहते थे जिन्हे हॉल से कोई मतलब नहीं था तो हमारा भी उसने कोई मतलब नहीं था,पर मेरे हिसाब से दूसरा पड़ोसी शौचालय ही ठीक था जिसे हम रोज़ कम से कम काम में तो लाया करते थे.
अब बात करते है वर्त्तमान की.ऐसा कहा जाता है की हम अपने दोस्त चुन सकते है पर पड़ोसी नहीं,पर मैंने अपने पड़ोसियों को चुना था और उनके लिए रूम तक झाप के रखा था,वो बात अलग है की बहुत कोशिशों के बाद उससे पार्टी निकलवाने में मैं सफल रहा.खुद के डिपार्टमेंट का बन्दा होने,पढाई में अव्वल और अच्छी दोस्ती होने के कारण मैंने उसे रूम तो दिलाने में मदद कर दी पर अभी के हालात कुछ अलग ही है.अभी ऐसा हो चूका है की वो रूम से न तो बाहर आता है और न ही किसी को रूम में घुसने देता.अगर कोई गलती से अंदर आ भी गया तो उसके हज़ार नखरे.इधर मत बैठो,इसे मत छुओ,ये मत करो-वो मत करो.लोग कितने स्वार्थी हो जाते है कभी कभी,पर स्वार्थी होना भी अच्छा है,जरूरत है तो एक सीमा की.
अब बात करते है दूसरे पड़ोसी की,हालाँकि उसे भी मैंने ही चुना था अपने पड़ोसी के रूप में.पर उसकी दुल्हन तो कोई और निकली.उसकी दुल्हन मगाई है.सिंगल रूम का सही इस्तेमाल तो सही मायने में वही कर रहा.दिन भर रूम में बंद और लैपटॉप में उलझा रहता पढ़ने के लिए और खाली वक़्त में अंग्रेजी गाने उसका मन बहलाने का काम करते है.कभी कभी तो दिनों तक मैं उसका चेहरा भी नहीं देख पाता.
कभी कभी लगता है की मैंने खुद अपने हाथों से ही अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली है,पता नहीं अगर मुझे कुछ हुआ तो वो रूम से बहार भी निकलेंगे या नहीं.पर जो भी हो वो दिल से अच्छे है.मेरी कठिनाइयों में मेरे साथ रहेंगे ऐसा मैं उम्मीद करता हूँ,पर कभी कभी उम्मीदें ही इंसान को डूबा जाती है.
अब बात करते है वर्त्तमान की.ऐसा कहा जाता है की हम अपने दोस्त चुन सकते है पर पड़ोसी नहीं,पर मैंने अपने पड़ोसियों को चुना था और उनके लिए रूम तक झाप के रखा था,वो बात अलग है की बहुत कोशिशों के बाद उससे पार्टी निकलवाने में मैं सफल रहा.खुद के डिपार्टमेंट का बन्दा होने,पढाई में अव्वल और अच्छी दोस्ती होने के कारण मैंने उसे रूम तो दिलाने में मदद कर दी पर अभी के हालात कुछ अलग ही है.अभी ऐसा हो चूका है की वो रूम से न तो बाहर आता है और न ही किसी को रूम में घुसने देता.अगर कोई गलती से अंदर आ भी गया तो उसके हज़ार नखरे.इधर मत बैठो,इसे मत छुओ,ये मत करो-वो मत करो.लोग कितने स्वार्थी हो जाते है कभी कभी,पर स्वार्थी होना भी अच्छा है,जरूरत है तो एक सीमा की.
अब बात करते है दूसरे पड़ोसी की,हालाँकि उसे भी मैंने ही चुना था अपने पड़ोसी के रूप में.पर उसकी दुल्हन तो कोई और निकली.उसकी दुल्हन मगाई है.सिंगल रूम का सही इस्तेमाल तो सही मायने में वही कर रहा.दिन भर रूम में बंद और लैपटॉप में उलझा रहता पढ़ने के लिए और खाली वक़्त में अंग्रेजी गाने उसका मन बहलाने का काम करते है.कभी कभी तो दिनों तक मैं उसका चेहरा भी नहीं देख पाता.
कभी कभी लगता है की मैंने खुद अपने हाथों से ही अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली है,पता नहीं अगर मुझे कुछ हुआ तो वो रूम से बहार भी निकलेंगे या नहीं.पर जो भी हो वो दिल से अच्छे है.मेरी कठिनाइयों में मेरे साथ रहेंगे ऐसा मैं उम्मीद करता हूँ,पर कभी कभी उम्मीदें ही इंसान को डूबा जाती है.
Saturday 18 October 2014
नाव और ज़िन्दगी !!
ज़िन्दगी एक सरिता की तरह है और हम उसमे तैरने वाले नाव.मुझे हमारा जीवन चक्र इस नौका के सफर के सामान प्रतीत होता है.जिस तरह एक नाव अकेला अपना सफर तय करता है उसी की भांति हम भी अपना जीवन काल अकेले ही व्यतीत करते है.हमारा न कोई होता है और न हम किसी के.दो पल के लिए अगर कोई साथ भी आता है तो एक ओर जहाँ उसके आने का ख़ुशी ओर उमंग होता है वहीँ किसी दिल के कोने में उसके बिछड़ने का डर भी.दोस्त प्यार माँ बाप सब उस नाव के सफर में रंग भरने के लिए प्रकट होते है अपनी भूमिका निभाते है ओर समय आने पर विलुप्त हो जाते है.इस नौके का सफर कोई आसान नहीं होता,शायद हमारे ज़िन्दगी से कम तो कदापि नहीं.इसे भी अपने सफर में कई सारे तूफानों का सामना करना पड़ता है,कभी हवाएँ साथ नहीं देती तो कभी वायु अपना रुख बदल लेती,पर फिर भी ये नाव अपने मुकाम तक पहुचने में सफल हो ही जाती.
हमें भी इससे प्रेरणा लेकर आगे बढ़ना होगा.छोटे मोटे बरसात में भीगने से न डरकर उसका मुकाबला करना होगा उसका लुफ्त उठाना पड़ेगा.एक बात और कभी कभी वक़्त सागर की तरह सुनसान और शांत होगा और हम उसमे अकेले खड़े होंगे,वो हमें काटने को भी दौड़ेगा पर हमें उसे शांति से ग्रहण करना होगा,उसे समझना होगा.तभी इस सफर का मज़ा हम ले पाएंगे,इस विशाल रुपी सागर में जीवन गुजार पाएंगे.
हमें भी इससे प्रेरणा लेकर आगे बढ़ना होगा.छोटे मोटे बरसात में भीगने से न डरकर उसका मुकाबला करना होगा उसका लुफ्त उठाना पड़ेगा.एक बात और कभी कभी वक़्त सागर की तरह सुनसान और शांत होगा और हम उसमे अकेले खड़े होंगे,वो हमें काटने को भी दौड़ेगा पर हमें उसे शांति से ग्रहण करना होगा,उसे समझना होगा.तभी इस सफर का मज़ा हम ले पाएंगे,इस विशाल रुपी सागर में जीवन गुजार पाएंगे.
Wednesday 8 October 2014
पवन का एक झोका !!
तुम अगर जो नदी हो तो मैं भी पवन का एक झोका हूँ ,जो जाने अनजाने में तुम्हारे साथ रहता है या रहेगा,हर पल हर दम चाहे तुम मुझे महसूस करो या नहीं पर मैं हूँ तुम्हारे पास,तुम्हारे साथ हूँ.
तुम जब हिलोरें लेती हो तो वो मैं ही होता हूँ जो तुम्हे सफल बनता हूँ करता,तुम्हे आगे भेजता हूँ. तुम्हारे अंदर जो जीव जंतु और भिन्न भिन्न प्रकार के पोधें पनप रहें है,जो साँस ले रहे है उनका कारण भी मैं हूँ,मैं तुममे ही समाया हुआ हूँ,तुम मानो या न मानो,पर मैं हूँ तुम्हारे पास तुम्हारे साथ.
ज़रा सोचो खुद को मुझसे अलग कर के,क्या तुममे जीवन रहेगा?क्या तुम मुझसे टूट कर रह सकोगी,यहाँ तक की हम दोनों एक दूसरे के बिना कुछ नहीं हैं,तुम खुद से अगर ऑक्सीजन निकल दो तो बस मेरे ही दो रूप रह जाते हैं.
मैं यह चाह कर भी मना नहीं कर सकता की तुम मुझमे समायी न हो
मैं तो एक अभिश्राप ही हूँ,मैं किसी को न तो दिख सकता हूँ न तो कोई मुझे छु सकता है जो कम से कम तुम्हारे साथ तो नहीं है.वो तो एक तुम ही हो जो मुझे जीने का वरदान देती है.तुम ही देखो न अगर जो तुम मुझमे न हो तो मैं क्या हूँ,गरम हवा जिसे लोग लू कहकर कलंकित करते है.मैं क्या करूँ,इसमें मेरी कोई गलती नहीं है,तुम ही मुझसे रूठ कर चली जाती हो,मुझे अकेला छोड़ देती हो.
पर गर जो वहीँ तुम मेरे साथ होती हो तो मैं ठंढे पवन का झोंका बन जाता हूँ जिसे लोग खूब प्यार करते है और स्वीकारते हैं और जब तुम मुझे अपने गले लगा लेती हो,जब ज्यादा ही प्यार कर बैठती हो तब तो लोग झूम उठते है और वो ऐसा क्यों न करे उन्हें बारिश की फुहारें जो मिल रही होती है.
इसलिए अंततः तुम मेरे साथ रहना,मुझे समझना,मेरी खामियों को स्वीकारना और मेरी अच्छाइयों को और अच्छा करने का प्रयास करना.हम दोनों एक दूसरे के बिना अधूरे है,मैं आधा तुम्हारे बिना और तुम आधी मेरी बिना.
तुम जब हिलोरें लेती हो तो वो मैं ही होता हूँ जो तुम्हे सफल बनता हूँ करता,तुम्हे आगे भेजता हूँ. तुम्हारे अंदर जो जीव जंतु और भिन्न भिन्न प्रकार के पोधें पनप रहें है,जो साँस ले रहे है उनका कारण भी मैं हूँ,मैं तुममे ही समाया हुआ हूँ,तुम मानो या न मानो,पर मैं हूँ तुम्हारे पास तुम्हारे साथ.
ज़रा सोचो खुद को मुझसे अलग कर के,क्या तुममे जीवन रहेगा?क्या तुम मुझसे टूट कर रह सकोगी,यहाँ तक की हम दोनों एक दूसरे के बिना कुछ नहीं हैं,तुम खुद से अगर ऑक्सीजन निकल दो तो बस मेरे ही दो रूप रह जाते हैं.
मैं यह चाह कर भी मना नहीं कर सकता की तुम मुझमे समायी न हो
मैं तो एक अभिश्राप ही हूँ,मैं किसी को न तो दिख सकता हूँ न तो कोई मुझे छु सकता है जो कम से कम तुम्हारे साथ तो नहीं है.वो तो एक तुम ही हो जो मुझे जीने का वरदान देती है.तुम ही देखो न अगर जो तुम मुझमे न हो तो मैं क्या हूँ,गरम हवा जिसे लोग लू कहकर कलंकित करते है.मैं क्या करूँ,इसमें मेरी कोई गलती नहीं है,तुम ही मुझसे रूठ कर चली जाती हो,मुझे अकेला छोड़ देती हो.
पर गर जो वहीँ तुम मेरे साथ होती हो तो मैं ठंढे पवन का झोंका बन जाता हूँ जिसे लोग खूब प्यार करते है और स्वीकारते हैं और जब तुम मुझे अपने गले लगा लेती हो,जब ज्यादा ही प्यार कर बैठती हो तब तो लोग झूम उठते है और वो ऐसा क्यों न करे उन्हें बारिश की फुहारें जो मिल रही होती है.
इसलिए अंततः तुम मेरे साथ रहना,मुझे समझना,मेरी खामियों को स्वीकारना और मेरी अच्छाइयों को और अच्छा करने का प्रयास करना.हम दोनों एक दूसरे के बिना अधूरे है,मैं आधा तुम्हारे बिना और तुम आधी मेरी बिना.
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