Saturday 18 October 2014

नाव और ज़िन्दगी !!

ज़िन्दगी एक सरिता की तरह है और हम उसमे तैरने वाले नाव.मुझे हमारा जीवन चक्र इस नौका के सफर के सामान प्रतीत होता है.जिस तरह एक नाव अकेला अपना सफर तय करता है उसी की भांति हम भी अपना जीवन काल अकेले ही व्यतीत करते है.हमारा न कोई होता है और न हम किसी के.दो पल के लिए अगर कोई साथ भी आता है तो एक ओर जहाँ उसके आने का ख़ुशी ओर उमंग होता है वहीँ किसी दिल के कोने में उसके बिछड़ने का डर भी.दोस्त प्यार माँ बाप सब उस नाव के सफर में रंग भरने के लिए प्रकट होते है अपनी भूमिका निभाते है ओर समय आने पर विलुप्त हो जाते है.इस नौके का सफर कोई आसान नहीं होता,शायद हमारे ज़िन्दगी से कम तो कदापि नहीं.इसे भी अपने सफर में कई सारे तूफानों का सामना करना पड़ता है,कभी हवाएँ साथ नहीं देती तो कभी वायु अपना रुख बदल लेती,पर फिर भी ये नाव अपने मुकाम तक पहुचने में सफल हो ही जाती.  
हमें भी इससे प्रेरणा लेकर आगे बढ़ना होगा.छोटे मोटे बरसात में भीगने से न डरकर उसका मुकाबला करना होगा उसका लुफ्त उठाना पड़ेगा.एक बात और कभी कभी वक़्त सागर की तरह सुनसान और शांत होगा और हम उसमे अकेले खड़े होंगे,वो हमें काटने को भी दौड़ेगा पर हमें उसे शांति से ग्रहण करना होगा,उसे समझना होगा.तभी इस सफर का मज़ा हम ले पाएंगे,इस विशाल रुपी सागर में जीवन गुजार पाएंगे. 

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