Wednesday 8 October 2014

पवन का एक झोका !!

तुम अगर जो नदी हो तो मैं भी पवन का एक झोका हूँ ,जो जाने अनजाने में तुम्हारे साथ रहता है या रहेगा,हर पल हर दम चाहे तुम मुझे महसूस करो या नहीं पर मैं हूँ तुम्हारे पास,तुम्हारे साथ हूँ.
तुम जब हिलोरें लेती हो तो वो मैं ही होता हूँ जो तुम्हे सफल बनता हूँ करता,तुम्हे आगे भेजता हूँ. तुम्हारे अंदर जो जीव जंतु और भिन्न भिन्न प्रकार के पोधें पनप रहें है,जो साँस ले रहे है उनका कारण भी मैं हूँ,मैं तुममे ही समाया हुआ हूँ,तुम मानो या न मानो,पर मैं हूँ तुम्हारे पास तुम्हारे साथ.
ज़रा सोचो खुद को मुझसे अलग कर के,क्या तुममे जीवन रहेगा?क्या तुम मुझसे टूट कर रह सकोगी,यहाँ तक की हम दोनों एक दूसरे के बिना कुछ नहीं हैं,तुम खुद से अगर ऑक्सीजन निकल दो तो बस मेरे ही दो रूप रह जाते हैं.
मैं यह चाह कर भी मना नहीं कर सकता की तुम मुझमे समायी न हो
मैं तो एक अभिश्राप ही हूँ,मैं किसी को न तो दिख सकता हूँ न तो कोई मुझे छु सकता है जो कम से कम तुम्हारे साथ तो नहीं है.वो तो एक तुम ही हो जो मुझे जीने का वरदान देती है.तुम ही देखो न अगर जो तुम मुझमे न हो तो मैं क्या हूँ,गरम हवा जिसे लोग लू कहकर कलंकित करते है.मैं क्या करूँ,इसमें मेरी कोई गलती नहीं है,तुम ही मुझसे रूठ कर चली जाती हो,मुझे अकेला छोड़ देती हो.
पर गर जो वहीँ तुम मेरे साथ होती हो तो मैं ठंढे पवन का झोंका बन जाता हूँ जिसे लोग खूब प्यार करते है और स्वीकारते हैं और जब तुम मुझे अपने गले लगा लेती हो,जब ज्यादा ही प्यार कर बैठती हो तब तो लोग झूम उठते है और वो ऐसा क्यों न करे उन्हें बारिश की फुहारें जो मिल रही होती है.
इसलिए अंततः तुम मेरे साथ रहना,मुझे समझना,मेरी खामियों को स्वीकारना और मेरी अच्छाइयों को और अच्छा करने का प्रयास करना.हम दोनों एक दूसरे के बिना अधूरे है,मैं आधा तुम्हारे बिना और तुम आधी मेरी बिना.

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