Saturday 28 February 2015

दोस्ती:एक एटीएम (ऐनी टाइम मदद )

ऐसा क्यों होता है की हम लोगों की अच्छाइयों को छोड़ उनके बुराइयों पर ज्यादा गौर कर बैठते है जब हमारी बारी आती है उनके लिए कुछ करने की.हम अगर किसी की निस्वार्थ भाव से मदद करें और कभी कभार किसी कारण के वजह से उसकी मदद न कर पाये तो उसे सिर्फ वही बात क्यों याद रह जाती है उसे वो तो बिलकुल याद नहीं रहता की हमने पहले भी उसकी मदद की है वो भी बिना किसी शर्त के बिना किसी लाभ के.हमने ही हर बार उसकी मदद करने की जिम्मेदारी थोड़ी न ले रखी है.जब उसके बारी आती है हमारी मदद की तो वो वही बात बोलकर निकल जाता है की " याद है तुमने उस दिन मेरी मदद नहीं की थी तो मैं क्यों करू " जैसे की वह बस उस मौके की तलाश में है की कब हम उनसे वैसा ही मदद मांगे.
कितनी चालू है ये दुनिया जो हमसे अपने काम बड़ी चालाकी से निकलवा लेती है या फिर हम बेवक़ूफ़ है जो बेवज़ह दुसरो की मदद के लिए अपना अमूल्य वक़्त ज़ाया करते फिरते है.मैं मानता हूँ कि किसी और से उम्मीद रखना खुद में अच्छी बात नहीं पर फिर भी कभी न कभी किसी मोड़ पर हमें दूसरों की,अपने दोस्तों की,जरूरत पद ही जाती हैं.
कुछ दोस्त तो ऐसे भी बन गए है जो सिर्फ काम पड़ने पर ही फ़ोन किया करते है. क्या आज का ज़माना वो ज़माना नहीं रह गया जहाँ लोग दूसरों की सलामती और हाल चाल जानने के लिए भी फ़ोन किया करें,लोगों को मतलब है तो बस अपने काम से. काम निकल गया तो कोई शुक्रिया तक नहीं कहता.और अगर कोई ये कहे की उसके पास समय नहीं था किसी को फ़ोन करने का तो आप उस व्यक्ति के संचालन का अंदाजा लगा सकते है,ये सोच सकते है की वो कैसे मैनेज करता होगा अपनी ज़िंदगी.
कुछ ऐसे भी दोस्त है जो ये बात गर्व से कहते है की हमारे तरफ तो लोग काम होने की वज़ह से दूसरों को फ़ोन करते है.दुःख की बात तो ये है की हम इतने शिक्षित होने के बावजूद इन ख्यालों पर आँख मूँद कर विश्वास कर लेते है.डिग्रियाँ तो बस कागजो पर ली जाती है काश कोई लोगों के चरित्र की भी डिग्रियां बांट देता तो कितना अच्छा होता.कम से कम ये तो पता चल जाता की किससे दोस्ती करनी है और किससे नहीं.
खैर मैंने तो इस श्रेणी में आने वालों दोस्तों से परहेज़ करना शुरू कर दिया और आपसे भी निवेदन है कि आप भी करें क्युकी जब आप उनके ऐसे कठोर और निर्दयी टिपण्णियां सुंनेंगे तो कही न कही आपको भी दर्द जरूर होगा

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